Saturday, November 4, 2023

Thursday, August 10, 2023

मेरा उपन्यास "शिखंडी" अब मराठी में भी उपलब्ध है। अनुवादक हैं मराठी और हिंदी की प्रतिष्ठित साहित्यकार एवं अनुवादक डॉ संध्या टिकेकर । - डॉ (सुश्री) शरद सिंह


मेरा उपन्यास "शिखंडी" अब मराठी में भी उपलब्ध है। अनुवादक हैं मराठी और हिंदी की प्रतिष्ठित साहित्यकार एवं अनुवादक डॉक्टर संध्या टिकेकर जी।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

इसे प्रकाशित किया है shopizen.in ने 🙏

 

Monday, December 12, 2022

गदर की चिनगारियां (नाटक संग्रह) - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह, 2011, सस्ता साहित्य मंडल, नई दिल्ली

 

Gadar Ki Chingari, Natak, Book of Dr (Ms) Sharad Singh, 2011, Sasta Sahitya Mandal, N-17, First Flore,Connaught Circus, New Delhi - 110001 

गदर की चिनगारियां (नाटक संग्रह) - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह, 2011, सस्ता साहित्य मंडल

एन-17, पहली मंजिल, कनाॅट सर्कस, नई दिल्ली - 110001


Gadar Ki Chingari, Natak, Book of Dr (Ms) Sharad Singh, 2011, Sasta Sahitya Mandal, N-17, First Flore, Connaught Circus, New Delhi - 110001   


Thursday, April 14, 2022

डॉ अम्बेडकर का स्त्रीविमर्श | लेखिका | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | पुस्तक

#डॉअम्बेडकर_का_स्त्रीविमर्श
#लेखिका  #डॉसुश्रीशरदसिंह 
प्रकाशक – भारत बुक सेन्टर, 17, अशोक मार्ग, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)- 226001
#mybook #मेरी पुस्तक

Monday, January 3, 2022

शरद सिंह के उपन्यास "शिखण्डी" की समीक्षा "आजकल" पत्रिका के जनवरी 2022 अंक में

मित्रो, मेरे उपन्यास "शिखण्डी" की समीक्षा प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार की लोकप्रिय पत्रिका "आजकल" के जनवरी 2022 अंक में प्रकाशित हुई है। 
आभारी हूं समीक्षक प्रदीप कुमार जी की🙏
हार्दिक धन्यवाद आजकल🌷
हार्दिक धन्यवाद सामयिक प्रकाशन 🌷

Saturday, November 6, 2021

Dr (Miss) Sharad Singh is a freelance writer, columnist, social worker, environmentalist, photographer and artist

Dr (Miss) Sharad Singh is a freelance writer, columnist, social worker, environmentalist, photographer and artist.  

She has published more than 50 books.  These include four novels, five story collections, three books on women's discussions and books on biographies, history, forensic science, solar energy, tribal life, folklore, ghazals, novels etc.   


She is Gold Medalist Double MA in Indian History, Culture and Archaeology.  She is PhD in the subject "Aesthetic Elements of Khajuraho Sculpture".  Research work has been done on Dr. Sharad Singh's novels, stories and women's discussions in various universities of the country.  

She has always raised his voice in favor of exploited, oppressed women through his writings.  "Patton Me Quaid Auraten" (Women imprisoned in leaves) and women's discussion book 'Aurat Teen Tasveeren' (Women Three Pictures) centered on women beedi workers of Bundelkhand, have been included in the Manorama Year Book.  Her novels titled 'Pichhale Panne Ki Aurauten' (Women of Back Pages) centered on Bedia women, and 'Kasbai Simone' (Simone of a town) on live-in relation, have received many national and regional level honors.  Her another novel "Pachakauri" is a read and popular novel analyzing the layers of political and journalistic world closely. Her fourth novel "Shikhandi" interprets the life of Shikhandi, a major character of Mahabharata, from a new perspective.


 Dr (Ms) Sharad Singh lives in Sagar Madhya Pradesh, India. She is currently doing freelance writing.  She has been the executive editor of the literary magazine "Samayik Saraswati" published from New Delhi and she is constantly active on social media including newspapers and magazines.  She believe that only knowledge and courage of rights can give women exploitation-free life.  Her regular column "Charcha Plus" in the daily newspaper "Sagar Dinkar" published from Sagar, has earned himself a distinct identity among the enlightened readers for his analytical writings on several contemporary issues.  Prior to this, Dr.  (Ms.) Sharad Singh has written a regular column titled "Batkao" in the daily newspaper "Acharan" published from Sagar itself and is writing a weekly column of book review in the daily "Acharan" these days.  

 She is invited to national and international seminars & Webinar for lectures and discussions on various subjects.
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Monday, October 25, 2021

साहित्यकार डॉ. (सुश्री) शरद सिंह को प्राप्त सम्मान एवं पुरस्कार

 

साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, म.प्र. शासन का ‘‘पं. बालकृष्ण शर्मा नवीन पुरस्कार’’ - 2015

साहित्यकार डॉ. (सुश्री) शरद सिंह को प्राप्त सम्मान एवं पुरस्कार :


1-    गृह मंत्रालय, भारत सरकार का ‘गोविन्द वल्लभ पंत पुरस्कार -2000’ ‘न्यायालयिक विज्ञान की नई चुनौतियां’, पुस्तक के लिए- 2000

2-    साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, म.प्र. शासन का ‘‘पं. बालकृष्ण शर्मा नवीन पुरस्कार’’ - 2015

3-    मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन का ‘‘वागीश्वरी सम्मान’’- 2012

4-    श्रेष्ठ संपादन हेतु राज्यस्तरीय ‘‘पं. रामेश्वर गुरू पुरस्कार 2017’’ संप्रे संग्रहालय, भोपाल, मध्यप्रदेश - 2017

5-    ‘नई धारा’ सम्मान, नई धारा रचना सम्मान समिति, पटना, बिहार - 2012    

6-    ‘विजय वर्मा कथा सम्मान’, हेमंत फाउंडेशन,  मुंबई - 2014

7-    ‘पं. रामानन्द तिवारी स्मृति प्रतिष्ठा सम्मान’, लेखिका संघ इन्दौर, मध्य प्रदेश - 2008    

8-    ‘जौहरी सम्मान’, अखिल भारतीय बुंदेलखंड साहित्य एवं संस्कृति परिषद भोपाल द्वारा राजभवन में आयोजित सम्मान समारोह में मध्य प्रदेश के राज्यपाल महामहिम श्री राम नरेश यादव द्वारा सम्मानित, भोपाल मध्यप्रदेश- 2012    

9-    ‘गुरदी देवी सम्मान’, बुंदेली लोक कला संगम संस्थान लखनऊ, उत्तर प्रदेश - 2012    

10-    ‘अंबिकाप्रसाद ‘दिव्य रजत अलंकरण-2004’, भोपाल, मध्य प्रदेश- 2004    

11-    ‘श्रीमंत सेठ भगवानदास जैन स्मृति सम्मान’, सागर,  मध्य प्रदेश - 2004

12-    ‘कस्तूरी देवी चतुर्वेदी लोकभाषा लेखिका सम्मान -2004’, मध्यप्रदेश लेखक संघ, भोपाल, मध्य प्रदेश- 2004

13-    ‘मां प्रभादेवी सम्मान’, जन परिषद भोपाल, मध्य प्रदेश - 2012    

14-    ‘शक्ति सम्मान 2013’, नगर विधायक सागर, मध्य प्रदेश - 2013

15-    ‘शक्ति सम्मान 2016’,  नगर विधायक सागर, मध्य प्रदेश  - 2016

16-    ‘एक्सीलेंस अवार्ड फॉर क्रिएटर्स 2018, सागर टी.वी. न्यूज, सागर, मध्य प्रदेश - 2018

17-    ‘शिवकुमार श्रीवास्तव सम्मान’, नेशनल बुक ट्रस्ट दिल्ली तथा पृथ्वी समाज उत्थान समिति सागर, मध्य प्रदेश का संयुक्त सम्मान समारोह- 2015    

18-    ‘निर्मल साहित्य सम्मान’’ आर्ष परिषद सागर, मध्यप्रदेश -    2017

19-    ‘विट्ठलभाई पटेल सम्मान’, मनवानी फिल्म्स सागर मध्यप्रदेश - 2018

20 -  " सार्थक साहित्य विमर्श सम्मान" मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति हिंदी भवन भोपाल की रजत जयंती के अवसर पर भोपाल में आयोजित सम्मान समारोह - 2018

21 -    ‘दादा डालचंद जैन स्मृति प्रतिभा सम्मान’, सागर, मध्य प्रदेश- 2018

22 - " गुलाब रानी सोनी स्मृति अलंकरण" मध्य प्रदेश की लेखिका संघ दमोह - 2018

23 -    ‘सुधा सावित्री तिवारी स्मृति लेखिका सम्मान’, सुधा सावित्री तिवारी स्मृति सम्मान समिति एवं संगीत श्रोता समाज, सागर, मध्य प्रदेश - 2019

24 -     क्षत्रिय समाज साहित्य सम्मान, सागर, मध्य प्रदेश - 2015 से 2020 तक प्रतिवर्ष


    - आदि अनेक राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक स्तर के सम्मान।

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Friday, February 5, 2021

टीवी चैनल 'आज तक' बुक कैफे पर मेरे उपन्यास 'शिखण्डी' की चर्चा - डॉ शरद सिंह


देश के चर्चित टीवी चैनल 'आजतक' के साहित्यिक कार्यक्रम BookCafe 'साहित्य तक' में 'आजतक' के साहित्यमर्मज्ञ, समीक्षक जयप्रकाश पाण्डेय जी ने बहुचर्चित पांच क़िताबों में मेरे उपन्यास 'शिखण्डी' पर भी विस्तृत चर्चा की है। इस पूरी प्रस्तुति को आप यू ट्यूब की इस लिंक पर देख सकते हैं - 

https://youtu.be/pQKX4jHXCtM

 

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Tuesday, January 19, 2021

दैनिक जागरण, नईदुनिया के सप्तरंग परिशिष्ट में मेरे उपन्यास ‘‘शिखण्डी’’ की वरिष्ठ समीक्षक राजेन्द्र राव जी द्वारा की गई समीक्षा - डाॅ शरद सिंह

 

Shikhandi, Novel of Dr Sharad Singh - Review in Dainik Jagran, Saptrang, Punarnava, 18.01.2021 by Rajendra Rao
Shikhandi, Novel of Dr Sharad Singh - Review in Jagaran, Naidunia, Saptrang Punarnava, 18.01.2021 by Rajendra Rao

दिनांक 18.01.2021 को दैनिक जागरण, नईदुनिया के सप्तरंग 
परिशिष्ट में मेरे उपन्यास ‘‘शिखण्डी’’ की वरिष्ठ समीक्षक राजेन्द्र राव जी द्वारा की गई समीक्षा प्रकाशित हुई है। 
https://epaper.naidunia.com/mepaper/18-jan-2021-74-indore-edition-indore-page-10.html

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ब्लाॅग पाठकों की पठन-सुविधा हेतु प्रकाशित समीक्षा लेख जस का तस मैं यहां टेक्स्ट रूप में प्रस्तुत कर रही हूं- 

"डाॅ. शरद सिंह हिंदी के उन विरल कथाकारों में हैं, जो लेखन पूर्व शोध में संलग्न होते हैं। यह कृति विरल कथासागर महाभारत से एक अनोखे चरित्र के जीवन और संघर्ष को पर्त-दर-पर्त उद्घाटित करती है, एमदम नए नज़रिए और नए अंदाज़ से।

काशी नरेश की ज्येष्ठ पुत्री अंबा और उसकी दो बहनों का अपहरण भीष्म द्वारा बलपूर्वक किए जाने के और कुरु वंश के राजकुमारों से विवाह किए जाने को सहन न करने और प्रतिकार करने के बाद वह निस्संग और निरुपाय हो कर भी अपने साथ हुए अन्याय का प्रतिशोध लेने की प्रतिज्ञा करती है और इसके लिए उसे किस तरह तीन जन्म और स्त्री-पुरुष दोनों के चोले धारण करने पड़ते हैं, इसका उद्देश्यपूर्ण और रोचक चित्रण इस उपन्यास में हुआ है। अंत होते-होते इसका वैचारिक पक्ष सघन स्त्रीविमर्श के रूप में सामने आता है जो पाठक को सहज ही स्वीकार्य हो सकता है। यूं तो शिखंडी की कथा युग-युग से सुनी जाती रही है परंतु इसे मानवीय और समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से कहा जाना एक अभिनव प्रयोग है।"

- राजेन्द्र राव

दैनिक जागरण (सप्तरंग), नईदुनिया (सतरंग) साहित्यिक पुनर्नवा, 18.01.2021

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हार्दिक धन्यवाद आदरणीय राजेन्द्र राव जी 🌹🙏🌹

हार्दिक धन्यवाद नईदुनिया 🌹🙏🌹


Shikhandi Novel of Dr (Miss) Sharad Singh

Friday, September 25, 2020

पिछले पन्ने की औरतें | उपन्यास | डॉ शरद सिंह

मेरी दीदी Dr Varsha Singh दैनिक आचरण में "पुनर्पाठ" कॉलम लिखती हैं। आज उन्होंने अपने कॉलम में मेरे पहले उपन्यास "पिछले पन्ने की औरतें को जगह दी है... जो यहां साझा कर रही हूं...


प्रिय मित्रों, 

               स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर : साहित्य एवं चिंतन " जिसमें पुस्तकों के पुनर्पाठ की श्रृंखला के अंतर्गत आठवीं कड़ी के रूप में प्रस्तुत है - सागर नगर निवासी, राष्ट्रीय स्तर पर ख्यात लेखिका डॉ. (सुश्री) शरद सिंह, जो मेरी अनुजा भी हैं, के उपन्यास  "पिछले पन्ने की औरतें" का पुनर्पाठ।

Pichhale Panne Ki Auraten - Novel of Sharad Singh


सागर: साहित्य एवं चिंतन

       पुनर्पाठ: ‘पिछले पन्ने की औरतें’ उपन्यास

                          -डॉ. वर्षा सिंह

                            Email-               drvarshasingh1@gmail.com


इस बार पुनर्पाठ में मैं जिस उपन्यास की चर्चा करने जा रही हूं उसका नाम है ’’पिछले पन्ने की औरतें‘‘। इस उपन्यास की लेखिका है डॉ. शरद सिंह। यह उपन्यास मुझे हर बार प्रभावित करता है इसलिए नहीं कि यह मेरी छोटी बहन शरद के द्वारा लिखा गया है बल्कि इसलिए कि इसे हिंदी साहित्य का बेस्ट सेलर उपन्यास और हिंदी साहित्य का टर्निंग प्वाइंट माना गया है। इसे बार-बार पढ़ने की ललक इसलिए भी जागती है कि इसमें एक अछूते विषय को बहुत ही प्रभावी ढंग से उठाया गया है। जी हां, इस उपन्यास में हाशिए में जी रही उन महिलाओं के जीवन की गाथा उनकी सभी विडंबनाओं के साथ सामने रखी गई है, जिन्हें हम बेड़नी के नाम से जानते हैं। समग्र हिन्दी साहित्य में स्त्रीविमर्श एवं आधुनिक हिन्दी कथा लेखन के क्षेत्र में सागर नगर की डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह का योगदान अतिमहत्वपूर्ण है। उन्होंने अपने पहले उपन्यास ‘‘पिछले पन्ने की औरतें’’ से हिन्दी साहित्य जगत में अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज कराई। ‘‘पिछले पन्ने की औरतें’’ उपन्यास का प्रथम संस्करण सन् 2005 में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद अब तक इस उपन्यास के हार्ड बाऊंड और पेपर बैक सहित अनेक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। यह न केवल पाठकों में बल्कि शोधार्थियों में भी बहुत लोकप्रिय है। देश के अनेक विश्वविद्यालयों में इस उपन्यास पर शोध कार्य किया जा चुका है और वर्तमान में भी अनेक विद्यार्थी इस उपन्यास पर शोध कार्य कर रहे हैं।

हिन्दी साहित्य में ’’पिछले पन्ने की औरतें‘‘ ऐसा प्रथम उपन्यास है जिसका कथानक बेड़नियों के जीवन को आाधार बना कर प्रस्तुत किया गया है। इस उपन्यास की शैली भी हिन्दी साहित्य के लिए नई है। यह उपन्यास अतीत और वर्तमान की कड़ियों को बड़ी ही कलात्मकता से जोड़ते हुए इसे पढ़ने वाले को वहां पहुंचा देता है जहां बेड़नियों के रूप में औरतें आज भी अपने पैरों में घंघरू बांधने के लिए विवश हैं। यह उपन्यास ‘‘रहस्यमयी श्यामा’’ से लेखिका की मुलाकात से आरम्भ होता है। कहने को तो यह मामूली सी घटना है कि लेखिका को सागर से भोपाल की बस-यात्रा के दौरान एक महिला सहयात्री मिलती है। लेकिन कथानक का श्रीगणेश ठीक वहीं से हो जाता है जब लेखिका को बातचीत में पता चलता है उस स्त्री का नाम श्यामा है और वह एक बेड़नी है। श्यामा राई नृत्य करती है और नृत्य करके अपने परिजन का पेट पालती है। यहीं से आरम्भ होती है एक जिज्ञासु यात्रा। इसके बाद लेखिका बेड़िया समाज के इतिहास और पारिवारिक संरचना पर अपनी शोधात्मक दृष्टि डालती है। वह स्वयं उन गांवों में जाती है जहां बेड़नियां रहती हैं। उनसे बात करती है, उनके जीवन को टटोलती है और उनके साथ, उनके घर पर रह कर उनके जीवन की बारीकियों को समझने का प्रयास करती है। यह एक बहुत बड़ा क़दम था। वाचिक और लिखित स्रोतों और ज़मीनी कार्यों के बीच तालमेल बिठाती हुई लेखिका शरद सिंह उपन्यास की अंतर्कथा के रूप में लिखती हैं गोदई की नचनारी बालाबाई की मर्मांतक कथा। जब एक गर्भवती बेड़नी को भी देह-पिपासु पुरुषों ने भावी मंा नहीं अपितु मात्र स्त्रीदेह के रूप में ही देखा। यह कथा मन को विचलित कर देती है। उपन्यास आगे बढ़ता है चंदाबाई, फुलवा के जीवन से होता हुआ रसूबाई के जीवन तक जा पहुंचता है। स्त्री को मात्र देह मानने वालों के द्वारा स्त्री के सम्मान और स्वाभिमान पर चोट पहुंचाने, उन पर अत्याचार करने वालों की दुर्दांत कुचेष्टाएं झेलती ये स्त्रियां। जिनके बारे में शरद सिंह कहती हैं कि ये वे औरतें हैं जिन्हें समाज अपनी खुशियों को बढ़ाने के लिए अपने पारिवारिक उत्सवों में नाचने के लिए तो बुलाता है लेकिन इन्हें अपने परिवार में शामिल करने से हिचकता है। वह इनकी खुशियों से कतई सरोकार नहीं रखना चाहता है।

Article on Novel Pichhale Panne Ki Auraten by Dr Varsha Singh

इस उपन्यास का एक और पहलू है कि यह उपन्यास परिचित कराता है उस औरत से जिसने अल्मोड़ा में जन्म लिया, लेकिन अपने जीवन का उद्देश्य बेड़िया समाज के लिए समर्पित करते हुए ‘बेड़नी पथरिया’ नामक गंाव में ‘सत्य शोधन आश्रम’ की स्थापना की। उसका नाम था चंदाबेन। इस उपन्यास की खांटी वास्तविक पात्र हैं चंदाबेन, जिन्होंने अपने जीवन के विवरण को इस उपन्यास का हिस्सा बनने दिया। वस्तुतः ’’पिछले पन्ने की औरतें‘‘ एक उपन्यास होने के साथ-साथ यथार्थ का औपन्यासिक दस्तावेज़ भी है। इसमें बेड़िया समाज का इतिहास है, बेड़नियों के त्रासद जीवन का रेशा-रेशा है, बेड़नियों के संघर्ष का विवरण है, उनकी आकांक्षाओं एवं आशाओं का लेखा-जोखा है। यही तो है सच्चा स्त्रीविमर्श कि जब किसी उपन्यास में जीवन की सच्चाई को पिरो कर उसे सच के क़रीब ही रखा जाए, इतना क़रीब कि इस उपन्यास को पढ़ने वाला पाठक बेड़नियों की त्रासदी से उद्वेलित हुए बिना नहीं रह पाए और उपन्यास के अंतिम पृष्ठ तक पहुंचते हुए बेड़नियों के उज्ज्वल भविष्य की दुआएं करने लगे।    

परमानंद श्रीवास्तव जैसे समीक्षकों ने उनके इस उपन्यास को हिन्दी उपन्यास शैली का ‘‘टर्निंग प्वाइंट’’ कहा है। यह हिन्दी में रिपोर्ताजिक शैली का ऐसा पहला मौलिक उपन्यास है जिसमें आंकड़ों और इतिहास के संतुलित समावेश के माध्यम से कल्पना की अपेक्षा यथार्थ को अधिक स्थान दिया गया है। यही कारण है कि यह उपन्यास हिन्दी के ‘‘फिक्शन उपन्यासों’’ के बीच न केवल अपनी अलग पहचान बनाता है अपितु शैलीगत एक नया मार्ग भी प्रशस्त करता है। शरद सिंह जहां एक ओर नए कथानकों को अपने उपन्यासों एवं कहानियों का विषय बनाती हैं वहीं उनके कथा साहित्य में धारदार स्त्रीविमर्श दिखाई देता है।

‘‘पिछले पन्ने की औरतें’’ शरद सिंह द्वारा लिखित उनका पहला शोधपरक उपन्यास है जिसमें सामाजिक स्तरों में दबी-कुचली और पिछले पन्नों में दर्ज कर भुला दी गईं औरतों को मुखपृष्ठ पर लाने का सफल प्रयास किया है। तीन भागों और सत्ताईस उपभागों में लिखे गए उपन्यास के स्त्री पात्र महत्वपूर्ण हैं। किसी स्त्री की वेदना एवं पीडा को रिर्पोताज शैली में लेखन करना लेखिका की कुशलता का परिचायक है। विभिन्न औरतों से होकर संपूर्ण भारतीय औरतों के अस्तित्व, अधिकार पर लेखिका ने प्रकाश डाला है। ’पिछले पन्ने की औरतें’ उपन्यास में शरदसिंह ने समाज की आन्तरिक और बाह्य परतों को खोलने का प्रयास किया वे समाज के कुरूप सत्य को बड़े ही बोल्ड ढंग से प्रस्तुत करती हैं उनकी लेखकीय क्षमता की विशेषता है कि वे जीवन और समाज के अनछुए विषयों को उठाती हैं।

जब भी मैं इस उपन्यास को पढ़ती हूं तो मुझे सुप्रसि़द्ध समीक्षक स्व. परमानंद श्रीवास्तव का वह समीक्षा-लेख याद आने लगता है जो उन्होंने ‘‘पिछले पन्ने की औरतें’’ के बारे में लिखा था - “ रोमांस की मिथकीयता के लिए कोई भी कथा छलांग लगा सकती है। शरद सिंह का उपन्यास ‘‘पिछले पन्ने की औरतें’’ बेड़िया समाज की देह व्यापार करने वाली औरतों की यातना भरी दास्तान है। शरद सिंह की प्रतिभा ‘तीली-तीली आग’ कहानी संग्रह से खुली। स्त्री विमर्श में उनका हस्तक्षेप और प्रामाणिक अनुभव अनुसंधान के आधार पर है। शरद सिंह वर्जना मुक्त हो कर इस अंधेरी दुनिया में धंसती हैं। उन्हें पता है कि स्त्री देह के संपर्क में हर कोई फायदे में रहना चाहता है। शरद सिंह ने ईश्वरचंद विद्यासागर, ज्योतिबाफुले आदि के स्त्री जागरण को समझते हुए इस नरककुंड से सीधा साक्षात किया है। शरद सिंह को दुख है कि जब देश में स्त्री उद्धार के आंदोलन चल रहे थे तब बेड़िया जाति की नचनारी, पतुरिया-जैसी स्त्रियों की मुक्ति का सवाल क्यों नहीं उठा? नैतिकता के दावेदार कहां थे? विडम्बना यह कि जो पुरुष इन बेड़िया औरतों को रखैल बना कर रखते, उन्हीं के घर के उत्सवों में इन्हें नाचने जाना पड़ता था।......शरद सिंह का बीहड़ क्षेत्रों में प्रवेश ही इतना महत्वपूर्ण है कि एक बार ही नहीं, कई-कई बार इस कृति को पढ़ना जरूरी जान पड़ेगा। अंत में शरद सिंह के शब्द हैं- ‘लेकिन गुड्डी के निश्चय को देख कर मुझे लगा कि नचनारी, रसूबाई, चम्पा, फुलवा और श्यामा जैसी स्त्रियों ने जिस आशा की लौ को अपने मन में संजोया था, वह अभी बुझी नहीं है.....।’ शरद सिंह ने जैसे एक.सर्वेक्षण के आधार पर बेड़नियों के देहव्यापार का कच्चा चिट्ठा लिख दिया है। तथ्य कल्पना पर हावी है। शरद सिंह की बोल्डनेस राही मासूम रजा जैसी है। या मृदुला गर्ग जैसी। या लवलीन जैसी। पर शरद सिंह एक और अकेली हैं। फिलहाल उनका कोई प्रतिद्वन्द्वी कथाक्षेत्र में नहीं है। ‘पिछले पन्ने की औरतें’’ उपन्यास लिखित से अधिक वाचिक (ओरल) इतिहास पर आधारित है। इस बेलाग कथा पर शील-अश्लील का आरोप संभव नहीं है। अश्लील दिखता हुआ ज्यादा नैतिक दिख सकता है। भद्रलोक की कुरूपताएं छिपी नहीं रह गई हैं। शरद सिंह के उपन्यास को एक लम्बे समय-प्रबंध की तरह पढ़ना होगा जिसके साथ संदर्भ और टिप्पणियों की जानकारी जरूरी होगी। पर कथा-रस से वंचित नहीं है यह कृति ‘पिछले पन्ने की औरतें’’। जब दलित विमर्श और स्त्री विमर्श केन्द्र में हैं, संसद में स्त्री सीटों के आरक्षण पर जोर दिया जा रहा हो पर पुरुष वर्चस्व के पास टालने के हजार बहाने हों- यह उपन्यास एक नए तरह की प्रासंगिकता अर्जित करेगा।”

निःसंदेह यह उपन्यास तब तक प्रासंगिक रहेगा जब तक औरतें समाज के पिछले पन्नों में क़ैद रखी जाएंगी। और अंत में मैं दे रही हूं बार-बार पढ़े जाने योग्य इस उपन्यास के आरम्भिक पन्ने में लिखी शरद सिंह की ही वे काव्य पंक्तियां जो एक नए स्त्रीविमर्श के पक्ष में आवाज़ उठाती हैं-

छिपी रहती है

हर औरत के भीतर

एक और औरत

लेकिन

लोग अक्सर

देखते हैं

सिर्फ बाहर की औरत।


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( दैनिक, आचरण  दि.19.09.2020)

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