सब कुछ यथावत चल रहा था कि ठकुराइन की दिनचर्या में पचकौड़ी ने प्रवेश किया। पहले तो ठकुराइन को वह तनिक भी नहीं सुहाया। मैला-कुचैला, भिखारी-सा लड़का। फिर धीरे-धीरे उनके मन में पचकौड़ी के प्रति ममत्व की भावना जाग उठी। उन्हें वह एक निरीह लड़का प्रतीत होने लगा। ठकुराइन को तो पचकौड़ी के रूप में मानो एक खिलौना मिल गया। जीता-जागता, चलता-फिरता खिलौना। उन्होंने उसे कपड़े दिए, खाना दिया और रहने की अनुमति दे दी। पचकौड़ी की दुख भरी कहानी सुन कर ठकुराइन को अपना दुख छोटा प्रतीत होने लगा। उन्हें यह जान कर अचम्भा हुआ कि इस दुनिया में पचकौड़ी जैसे अभागे भी पाए जाते हैं। पचकौड़ी के मन में उठने वाली जिज्ञासाएं ठकुराइन को चौंका देती थीं। उन्हें लगता कि यह लड़का तो एक बार में ही दुनिया के सारे रहस्य जान लेना चाहता है। वह जीना चाहता है। इस दुनिया से लड़ कर जीना चाहता है। उसके भीतर एक छटपटाहट मौज़ूद है लेकिन उसे अपनी छटपटाहट शांत करने का रास्ता नहीं मालूम। .... ठकुराइन ने भरसक प्रयास किया कि उनके और चेतन के संबंधों का गोपन, गोपन ही बना रहे किन्तु एक रात उन्हें ऐसा लगा कि पचकौड़ी ने उन्हें देख लिया है। वह लड़का स्त्री-पुरुष के गोपन संबंधों कें बारे में कितना जानता, समझता है इसका अनुमान उन्हें नहीं था किन्तु इस बात भय अवश्य हुआ कि कहीं पचकौड़ी ने इस बारे में किसी और को बता दिया तो? वे चेतन के जाने के बाद पचकौड़ी के कमरे में पहुंची और उसकी प्रतिक्रिया को टटोलने का प्रयास किया। उन्हें यह देख कर तसल्ली हुई कि पचकौड़ी अभी स्त्री-पुरुष के संबंधों के गणित से अनभिज्ञ है। न उसे वैध संबंधों का ज्ञान है और अवैध संबंधों का।